By Lohit,
स्वदेशी वैक्सीन, मेक इन इंडिया वैक्सीन जैसे बड़े-बड़े दावे करनी वाली सरकार की हकीकत क्या है यह 11 मई को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ख़ुद उजागर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने जब केंद्र सरकार से पूछा कि वैक्सीन के रिसर्च, डेवलपमेंट और उत्पादन के लिए क्या कोई धन या अनुदान दिया गया है! इस पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि भारत में बनने वाली किसी भी वैक्सीन के लिए सरकार ने किसी भी तरह का कोई धन या या अनुदान नहीं दिया है।
Credit: Sajith Kumar (Deccan Herald) |
बता दें पिछले वर्ष नवम्बर महीने में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तीसरे आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा करते हुए कोविड सुरक्षा मिशन के तहत वैक्सीन के रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए 900 करोड़ रुपये का ऐलान किया था। जब सरकार ने इतनी बड़ी रकम वैक्सीन के रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए आवंटित किया था तो सरकार कोर्ट में इससे क्यों मुकर गई? महामारी जैसे संकट के समय क्या इस देश के नागरिकों के साथ मजाक किया गया ?
सरकार ने हलफनामे में स्पष्ट तौर कहा है कि भारत में बनने वाली को-वैक्सीन और कोविशील्ड वैक्सीन को सरकार ने कोई वित्तीय मदद नहीं दी है। गौरतलब है कि को-वैक्सीन को भारत बायोटेक और आईसीएमआर (ICMR) ने मिलकर विकसित किया है। वहीं कोविशील्ड वैक्सीन को एस्ट्राजेनेका (स्वीडिश फर्म) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने मिलकर तैयार किया ।
सरकार ने कहा है कि सीरम इंस्टिट्यूट और भारत बायोटेक के साथ वित्तीय लेनदेन सिर्फ वैक्सीन की खरीद को लेकर हुआ है। जिसका पेमेंट वैक्सीन निर्माताओं को एडवांस में किया गया है। मई, जून और जुलाई के लिए सरकार ने सीरम इंस्टिट्यूट को कोविशील्ड वैक्सीन के 110 मिलियन डोज के लिए 1732.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। इसी अविधि के लिए भारत बायोटेक को को-वैक्सीन के 50 मिलियन डोज के लिए 787.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।
हलफनामे में सरकार की ओर से यह भी बताया गया कि आईसीएमआर ने भारत बायोटेक और सीरम इंस्टिट्यूट के क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए क्रमश: 35 करोड़ और 11 करोड़ रुपये खर्च किया गया। इसके अलावा किसी अन्य तरह की कोई और फन्डिंग नहीं हुई है।
कोरोना की पहली लहर में लोगों के बड़ी संख्या में मरने के बाद भी सरकार असंवेदनशील बनी रही। शायद सरकार वैक्सीन के मसले को हल्के में ले रही थी। अब जब देश वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है तो इसे सरकार की गलती नहीं मानी जाए तो किसकी मानी जाए ? प्रतिदिन हजारों इंसान लाशों में बदल रहे हैं इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? असंवेदनशीलता का प्रदर्शन हर स्तर पर जारी है।