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क्या 'नरेगा' को 'मनरेगा' नाम देकर महात्मा गांधी को किया जा रहा अपमानित?

By Prabhakar

ग्रामीण विकास और रोजगार के दोहरे लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मनरेगा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। देश तरक्की कर रहा है लेकिन बहुत धीमी गति से। इसका मुख्य कारण "विभागीय भ्रष्टाचार" है। क्या 'नरेगा' को 'मनरेगा' कहने मात्र से भ्रष्ट तंत्र पर लगाम लगेगा? उत्तर प्रदेश में होने वाले मनरेगा कार्यों में अक्सर गड़बड़ी ही देखने को मिलती है। ग्राम प्रधान अलग अलग ढंग से मनरेगा के लाखों करोड़ों रुपए डकार जा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में हर मुद्दे पर जम कर बोलते हैं और प्रदेश की तरक्की के पुल बांधते हैं लेकिन मनरेगा भ्रष्टाचार पर कोई उत्तर नहीं मिलता! सरकारी संस्थाओं के ऑडिट सरकारी ही होते हैं।

मिल जुल कर सबका धंधा चलता है और शायद इसी का परिणाम है कि "बेलवाडाड़ विद्यालय के पास तालाब की खुदाई एवं सफाई कार्य" जैसी परियोजनाओं में मनरेगा के कुल धन गबन जैसे मामले आम हो गए हैं। आइए “गांव का मौसम गुलाबी है” के दूसरे भाग में पढ़ते हैं उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की तरक्की का नया अध्याय! 



Representative Image | Photo credit - The Logical Indian


उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद में बहादुरपुर ब्लॉक अंतर्गत बेलवाडाड़ गांव में तालाब खुदाई और सफाई की ऐसी परियोजना पर भी मनरेगा के तहत काम करा दिया गया जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं। न ही कागज में और न ही मौके पर। ऐसा पढ़कर आपको हैरानी तो ज़रूर हो रही होगी लेकिन ये सच है। और शाबाशी भरे इस काम को संपन्न किया गया उत्तर प्रदेश के योगीराज में। आपको हैरान होने की ज़रूरत नहीं बस पढ़ लीजिए पूरा किस्सा।

कागज़ में तैयार किया गया तालाब: गांव के ही सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. प्रेम नारायण कहते हैं कि "करीब साल भर पहले मुझे मनरेगा के तहत गांव में कराए गए ऐसे कई कामों में गड़बड़ी और सरकारी धन के गबन की जानकारी हुई। जिस पर मैंने आरटीआई के माध्यम से तमाम जानकारियों को जुटाया तो यह जानकर हैरानी हुई कि तत्कालीन ग्राम प्रधान ने सरकारी अधिकारियों की मदद से मनरेगा का लाखों रुपया गबन कर लिया और मौके पर कोई तालाब भी नहीं था तो कोई काम कराए जाने का सवाल ही नहीं उठता।"

मनरेगा में लगी फर्जी हाज़िरी: ग्राम प्रधान ने मनरेगा के तहत 41 मजदूरों के जॉब कार्ड पर फर्जी हाज़िरी लगाकर ग्राम वासियों को भी फर्जीवाड़ा में फसा दिया। और उनके खाते से धन निकलवाकर अपना जेब भर लिया। व्यक्तिगत जमीन को तालाब बताकर फर्जी खुदाई - सफाई के नाम पर मनरेगा का करीब दो लाख रुपया गबन कर लिया।

भ्रष्टाचार पर अधिकारियों की चुप्पी: डॉ. प्रेम नारायण बताते हैं कि हमने हमारे ही गांव में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने का भरसक प्रयास किया और इस इस बाबत जिलाधिकारी समेत अन्य उच्चाधिकारियों को शिकायत दी लेकिन शुरुआत में श्री सुधीर कुमार चक्रवर्ती भूमि संरक्षण अधिकारी ने मामले में लीपा-पोती करके दबाना चाहा और फिर गलत जांच रिपोर्ट दे दिया। इससे स्पष्ट हो गया था कि मामले में उच्चाधिकारियों की संलिप्तता है वरना मामले को इतना नहीं दबाने का प्रयास किया जाता।

प्रधानमंत्री मोदी को भी लिखी चिट्ठी: डॉ. प्रेम नारायण बताते हैं कि मैंने बीते साल प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस तरह के व्यापक भ्रष्टाचारकी जानकारी दी थी और मामले की उच्च स्तरीय जांच कराकर जांच अधिकारी के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही करने की भी प्रार्थना की थी। लेकिन वहां से भी कोई कार्यवाही नहीं की गई और भ्रष्टाचारी - अपराधी निडर मस्त घूमते रहे।

            


प्रयागराज हाईकोर्ट में गया मामला: डॉ. प्रेम नारायण को जब जिला प्रशासन से न्याय मिलने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आई तो हमने इस भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए प्रयागराज हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां से जिलाधिकारी, बस्ती को प्रत्यावेदन के निस्तारण हेतु आदेशित किया गया। जिस संबंध में मुख्य विकास अधिकारी सहित अन्य अधिकारी मौके पर जांच के लिए आए और अपनी जांच आख्या दी।

भूमि संरक्षण आधिकारी/मुख्य विकास अधिकारी, बस्ती ने किस आधार पर दी झूठी जांच रिपोर्ट: सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. प्रेम नारायण बताते हैं कि जब मैंने प्रयागराज हाईकोर्ट से न्याय की गुहार लगाई तो मुझे न्याय मिलने की बहुत उम्मीद जगी। लेकिन अंततः भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी सरकारी व्यवस्था ने निराश ही किया। इस व्यापक भ्रष्टाचार की जांच के तत्कालीन जिलाधिकारी बस्ती सौम्या अग्रवाल ने एक जनपद स्तरीय टीम गठित की और उन्हें मौके की जांच के लिए भेजा। जांच के लिए आए मुख्य विकास अधिकारी, भूमि संरक्षण अधिकारी आदि ने आरोपी ग्राम प्रधान अर्चना देवी व सचिव अंकुर कुमार ने आपसी साजिश के तहत सत्य को दबाने और अपनी व विभागीय छवि को कलंकित होने से बचाने के झूठी रिपोर्ट दी गई।

लेखापाल की आख्या को किया गया अनदेखा:  तत्कालीन लेखपाल श्रीमती ओमिनी यादव ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि बेलवाडाड़ विद्यालय के पास सरकारी अभिलेखों में कोई तालाब ही नहीं है। ऐसे में किसी तालाब की साफ सफाई के कराए जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। तत्कालीन हल्का लेखपाल ने भ्रष्टाचार की जांच को संबंधित विभाग के सक्षम अधिकारी से कराए जाने हेतु आख्या भी प्रेषित की थी।


तत्कालीन लेखपाल श्रीमती ओमिनी यादव 
की जांच रिपोर्ट

जांच रिर्पोट: तालाब की जांच रिपोर्ट में नायब तहसीलदार, सहायक अभियन्ता डीआरडीए, परियोजना निदेशक डीआरडीए, मुख्य विकास आधिकारी, बस्ती ने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. प्रेम नारायण द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को निराधार बताते हुए जांच टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट के बिंदु '1' में एक हैरान करने वाला तथ्य भी अंकित किया। जिसमें कहा गया है कि "उक्त तालाब की जमीन जो की राजस्व अभिलेख में संक्रमणीय भूमिधरी के रूप में अंकित है (गाटा संख्या- 308ख पुराना गाटा संख्या - 203 रकबा 84 एयर) के चार सहखातेदार राम बरन मिश्रा, नरेंद्र नाथ मिश्रा, सुरेंद्र नाथ मिश्रा व सत्येंद्र मिश्रा के द्वारा पूर्व में दिनांक 25/03/2020 को एक सहमति पत्र प्रधान/सचिव को दिया गया जिसमें उनके द्वारा उक्त गाटे में कोरोना महामारी में बेरोजगारी तथा जलसंरक्षण के दृष्टिगत पोखरे के निर्माण की सहमति का उल्लेख किया गया है।" पूरी जांच रिपोर्ट यहाँ पढ़ें।        

आखिर क्या है सहमति पत्र का सच: सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. प्रेम नारायण बताते हैं कि धन में बंदरबांट करने वाले लोगों ने ही गांव में भ्रष्टाचार को भी सरंक्षण देने का कार्य किया है। राम बदन जिसका रिपोर्ट में नाम राम बरन अंकित किया गया उसने सहमति पत्र पर उस समय का बैकडेट अंकित किया है जब कोरोना महामारी के त्रासदपूर्ण स्थित की कल्पना भी संभव नहीं थी। साल 2020 के मार्च महीने में तो भारत में कोरोना के केस भी बहुत कम थे ऐसे में बेरोजगारी की समस्या का जिक्र किया जाना जाली दस्तावेज की पोल खोलने वाला है। इतना ही नहीं जब इस रहस्य से पर्दा उठा तो अन्य जमींदारों ने असहमति का शपथपत्र देकर कथित गाटा संख्या 338 ख में कथित परियोजना के कार्य को फर्जी बताया है।


सहखातेदारों ने दिया सहमति पत्र पर असहमति का शपथपत्र: गाटा संख्या 338 ख के सहखातेदार कमल नयन मिश्रा, राजेंद्र प्रसाद आदि ने सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कथित परियोजना में किसी प्रकार की सहमति न देने की बात कहकर परियोजना को खुद भी फर्जी बताया है।



करीब दो लाख रुपया गबन: तत्कालीन ग्राम प्रधान अर्चना देवी और सचिव अंकुर कुमार ने साल 2020 में लिखित तौर पर करीब एक महीने में पूरी की गई  "बेलवाडाड़ विद्यालय के पास तालाब की खुदाई एवं सफाई कार्य" परियोजना में मजदूरी के रूप में कुल 185322.00 रुपए और साइन बोर्ड पर कुल 5000 रूपये खर्च किया।

इसी तरह लगातार मनरेगा से भ्रष्टाचार के तार जुड़े रहे तो गांधी के देश में गांधी की छवि को तार तार करने के लिए क्यों न सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाये?