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भीख माँगती नन्हीं मुस्कानें

By Shrey Srivastava

"सवाल यह है कि भीख से जो पैसा बच्चों को मिलता है क्या वह  उनके पास ही रहता है ?या फिर उनका कोई मालिक होता है ?जो पहले न जाने कहाँ-कहाँ से बच्चों को अगवा कर उनकी तस्करी करता है, फिर भीख मंगवा कर अपना धंधा चलाता है?"

A Child
Photo Credit: The Statesman


जब माँगना मजबूरी न हो ,तब कोई क्यों माँगेगा?किसे पसंद होगा दूसरों के सामने हाथ फैलाना? सड़कों पर न जाने रोज़ कितनी ही नन्हीं जानें हमारे सामने आकर हाथ फैला देती हैं।हम उन्हें एक सिक्का दे देते हैं या उनके प्रति तरस भाव मन में रखकर उनसे दृष्टि फेर लेते हैं। सवाल यह है कि भीख से जो पैसा बच्चों को मिलता है क्या वह  उनके पास ही रहता है ?या फिर उनका कोई मालिक होता है ?जो पहले न जाने कहाँ-कहाँ से बच्चों को अगवा कर उनकी तस्करी करता है, फिर भीख मंगवा कर अपना धंधा चलाता है?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार भारत मे हर साल 40 हजार बच्चों का अपहरण होता है।उत्पादन संघ के आँकड़े बताते हैं कि भारत में करीब 3 लाख बच्चों से सड़कों पर जबरन भीख मंगवायी जाती है। जिस उम्र में इन मासूमों को खेलना कूदना चाहिए,पढ़ना लिखना चाहिए उस उम्र में भीख के लिए वो नन्हें हाथ फैला रहे हैं।दु:ख होता है इन बच्चों को अपने देश मे भीख मांगता हुआ देख कर।क्या कर रही है सरकार ?क्या कर रहे हैं हम? शायद दोनों ही बेख़बर हैं या दोनों नज़रअंदाज़ कर रहे हैं समस्या को।

एक सवाल कीजिये आपने आप से, क्या इन मासूमों को पैसे देना ठीक है? क्या हम बच्चों को पैसे देकर उन्हें प्रोत्साहित तो नहीं कर रहे मेहनत न करने के लिए?क्या इन प्रश्नों के स्पष्ट जवाब हैं हमारे पास? क्यों न अगली बार जब ये बच्चे भीख मांगने आये तो हम इन्हें पैसे न देकर इनसे बात करें और उनकी कुछ मदद करने की कोशिश करें।हो सके तो हम इन बच्चों को शिक्षा की ओर बढ़ायें।अगर एक भी बच्चे को हम शिक्षित कर सके तो इससे बड़ी मदद नही हो सकती उनकी।

अगली बार जब पैसे दें तो इसके बारे में जरूर सोचें क्योंकि नन्हें हाथों में किताबें ज्यादा अच्छी लगेंगीं पैसों के बजाये।